उम्र भर जिस घर के जल जाने का मुझको डर रहा
तुमने उस ही कागजी घर में मुझे ठहरा दिया
जिसकी नजरों में चमक और है लबों पे सुर्खियाँ
उसके दिल पर ज़िंदगी दे ने घाव इक गहरा दिया
मुफिलिसी में भी खुदा ने ज़ुल्म उस पर ये किया
खूबसूरत जिस्म देकर दाग इक गहरा दिया
फूल की खुशबूं उसे कब ज़िंदगी दे पायेगी
जिसपे शाहे-वक्त ने है मौत का पहरा दिया
मेरे घर की मुफलिसी ने काम ये अच्छा किया
हादसों के इस शहर में नींद का सहरा दिया
Saturday, July 19, 2008
Friday, July 11, 2008
उन दोस्तों से मिलना
उन दोस्तों से मिलना यारों संभल संभल के
जीते हैं जिंदगी जो चेहरे बदल बदल के
अब किसको भला फुरसत बेदर्द ज़माने की
इस शहर के तो नायब चलते फिसल फिसल के
जिसने कभी न पाया मलिकाए मोहब्बत को
वो किस तरह से कह दे शीरां ग़ज़ल ग़ज़ल के
मत पूछ उससे जालिम चेहरे पे सलवटें क्यूँ
काटी हो जिसने रातें करवट बदल बदल के
जीते हैं जिंदगी जो चेहरे बदल बदल के
अब किसको भला फुरसत बेदर्द ज़माने की
इस शहर के तो नायब चलते फिसल फिसल के
जिसने कभी न पाया मलिकाए मोहब्बत को
वो किस तरह से कह दे शीरां ग़ज़ल ग़ज़ल के
मत पूछ उससे जालिम चेहरे पे सलवटें क्यूँ
काटी हो जिसने रातें करवट बदल बदल के
Tuesday, July 8, 2008
प्रेम
प्रेम में बंधन नहीं हैं
तुम उसे एहसास के नन्हें सजीले पंख देकर मुक्त कर दो
वह उडेगा
क्षण भर उडेगा
और फिर से लोट कर
स्नेह के बंधन तुम्हारे चूम लेगा।
देह के लघु खंड तो क्षण की शिला हैं
छू नहीं सकते
स्थिर हैं
ये तुम्हारे प्रेम की नव सर्जना में गदगद रहेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
तुम उसे एहसास के नन्हें सजीले पंख देकर मुक्त कर दो
वह उडेगा
क्षण भर उडेगा
और फिर से लोट कर
स्नेह के बंधन तुम्हारे चूम लेगा।
देह के लघु खंड तो क्षण की शिला हैं
छू नहीं सकते
स्थिर हैं
ये तुम्हारे प्रेम की नव सर्जना में गदगद रहेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
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