Saturday, July 19, 2008

उम्र भर जिस घर के जल जाने का मुझको डर रहा
तुमने उस ही कागजी घर में मुझे ठहरा दिया
जिसकी नजरों में चमक और है लबों पे सुर्खियाँ
उसके दिल पर ज़िंदगी दे ने घाव इक गहरा दिया
मुफिलिसी में भी खुदा ने ज़ुल्म उस पर ये किया
खूबसूरत जिस्म देकर दाग इक गहरा दिया
फूल की खुशबूं उसे कब ज़िंदगी दे पायेगी
जिसपे शाहे-वक्त ने है मौत का पहरा दिया
मेरे घर की मुफलिसी ने काम ये अच्छा किया
हादसों के इस शहर में नींद का सहरा दिया

Friday, July 11, 2008

उन दोस्तों से मिलना

उन दोस्तों से मिलना यारों संभल संभल के
जीते हैं जिंदगी जो चेहरे बदल बदल के
अब किसको भला फुरसत बेदर्द ज़माने की
इस शहर के तो नायब चलते फिसल फिसल के
जिसने कभी न पाया मलिकाए मोहब्बत को
वो किस तरह से कह दे शीरां ग़ज़ल ग़ज़ल के
मत पूछ उससे जालिम चेहरे पे सलवटें क्यूँ
काटी हो जिसने रातें करवट बदल बदल के

Tuesday, July 8, 2008

प्रेम

प्रेम में बंधन नहीं हैं
तुम उसे एहसास के नन्हें सजीले पंख देकर मुक्त कर दो
वह उडेगा
क्षण भर उडेगा
और फिर से लोट कर
स्नेह के बंधन तुम्हारे चूम लेगा।
देह के लघु खंड तो क्षण की शिला हैं
छू नहीं सकते
स्थिर हैं
ये तुम्हारे प्रेम की नव सर्जना में गदगद रहेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे
मूक अभिनन्दन करेंगे