Thursday, September 11, 2008

ऐ दोस्त!

ऐ दोस्त!

चाहता हूं तुम भोले ही रहो -

उन तितलियों की तरह

जो फूलों की रंगीनियों से बुन लेती हैं

अपने परों को

उन नन्हें पंछियों की तरह

जिन्हें सुरों की पहचान नहीं

फिर भी उनकी किलकारियां

सहेज लेती हैं नए राग

उन छोटे बादलों की तरह

जो सूरज को छिपा लेते हैं

पल भर को अपने अंक में

और फिर हंसकर, तालियाँ बजाकर

अगले पल उन्हें छोड़ देते हैं.

तुम्हारा यही भोलापन मुझे भाता है

जब वह हँसता है

तब मेरे भीतर लहरा जाती है

रौशनी की नदी

हौले-हौले

झरनों से बहते संगीत की तरह.

दोस्त, तुम ऐंसे ही रहना

आँगन की धरती पर

घुटनों के बल डगमगाकर चलते

बचपन की तरह.

ऐ दोस्त!

तुम भोले ही रहना.

अपरिचित

तुमसे परिचय
जैंसे नन्ही सी चिड़िया ने आँख खोली
पल भर चहचहाई
और फिर
फुर्र का उड़ गयी
लगा ---
वसंत लौट आया.
जिनसे सीपियों ने ली अंगड़ाई
मोतियों ने खोले अपने पंख
और बिखेर दिए
लहरों पर अनेक इन्द्रधनुष.
जैंसे परियों कि बरात
नन्ही-सी बिटिया कि हंसी
कलियों का इठलाना
सावन का बहकाना
अनछुवे पलों का महकना
और कमसिन सपनों का लजाना
और .... और .... और ....

सच कितनी सहज हो तुम
फिर भी क्यों हो
अभी तक मेरे लिए अपरिचित.