खुली किताब के
पहले पन्ने पर
बचपन के आँगन में
तैर गयी
अनखिली धूप।
खुली किताब के
दूसरे पन्ने पर
यौवन के आँगन में
फिसल गयी मदमाती धूप।
खुली किताब के
तीसरे पन्ने पर
बुदापे के आँगन में
सिसक गयी मुरझाती धूप।
.... और फिर
धूप की खुली किताब
बंद हो गयी।
Saturday, November 1, 2008
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