Saturday, November 1, 2008

धूप की खुली किताब

खुली किताब के
पहले पन्ने पर
बचपन के आँगन में
तैर गयी
अनखिली धूप।

खुली किताब के
दूसरे पन्ने पर
यौवन के आँगन में
फिसल गयी मदमाती धूप।

खुली किताब के
तीसरे पन्ने पर
बुदापे के आँगन में
सिसक गयी मुरझाती धूप।

.... और फिर
धूप की खुली किताब
बंद हो गयी।

1 comment:

डॉ 0 विभा नायक said...

shabdon ka bahut ki sundar prayog hai, shabd bhi kavita me vyapt bhavon ki tarah komal aur saundary se bhare hain... itni sundar kriti ke liye aapko badhai