Friday, July 11, 2008

उन दोस्तों से मिलना

उन दोस्तों से मिलना यारों संभल संभल के
जीते हैं जिंदगी जो चेहरे बदल बदल के
अब किसको भला फुरसत बेदर्द ज़माने की
इस शहर के तो नायब चलते फिसल फिसल के
जिसने कभी न पाया मलिकाए मोहब्बत को
वो किस तरह से कह दे शीरां ग़ज़ल ग़ज़ल के
मत पूछ उससे जालिम चेहरे पे सलवटें क्यूँ
काटी हो जिसने रातें करवट बदल बदल के

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