Tuesday, October 28, 2008

कुछ कवितायें

१ मैं चाहता हूं
धूप चीर दे मेरे शरीर को भीतर तक
वहां तक,
जहां तक
मैं स्वयं अनुभव नहीं कर सकता
२ मैं तुम्हारे रूप का एक अंश
भर लेना चाहता था अपनी जेबों में
पर यह क्या!
अभी तो देखा भर भी नहीं था
कि मेरी जेबों से
छलक पड़ा
तुम्हारे रूप का संसार।
३ तुम मुझे प्रेम करती रहना
तुम्हारा प्रेम मुझे बल देता है
बहुत भीतर तक
और 'प्रेम' के विरुद्ध मेरा आन्दोलन
और शक्तिवान हो जाता है।

No comments: