Tuesday, October 21, 2008

मधुर दिवाली

मधुर मधुर मेरे दीपक से
नेह रूप की जली दिवाली
मंजुल मंजुल सौम्य किरण बन
पलकों के तल पली दिवाली।

कंचन कंचन जल से भीगी
सजी हुई दीपों की पांती
जीवन में खुशियाँ भर लाई
उसके अमर रूप की बाती
झनक झनक कोमल पग धर तल
झूम झूम कर चली दिवाली।

मधुर सुधा रस से है छलकी
उसके निर्झर तन की काया
अधरों के कम्पन से लिपटी
प्रेम सिक्त दीपक की छाया
मन में हंसती ओ' इठलाती
मेरा मन छल चली दिवाली।

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